स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार, हमारे
देश में बड़ी
मजेदार चीज है
ये अधिकार.
होने को तो अधिकार के साथ कर्तव्य नाम की 'बला' भी जुडी होती है और लोग जानते भी हैं पर प्रेम की मीठी कैंची से जेब कतरने में माहिर, जुगाड़ समपन्न हमारे लोग कैसे स्वीकार करें की वो गलत भी हो सकते हैं. हम बेशक पांचवी पास ना कर सकें पर इतने प्रतिभा समपन्न हैं कि अपने कलेक्टर तक को उसकी नानी याद दिला दें. हम ठहरे दूसरों की कमी निकालने के एक्सपर्ट. हमारे यहां (ये पता नहीं क्यों) इसे एक योग्यता के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता वर्ना एक ओलम्पिक शुरू किया जा सकता है जहाँ पहला स्थान तो हमारा पक्का है, हाँ पाकिस्तानी और बंगलादेशी भाई जरूर माफ़ करें क्योंकि उनके दावे को नजरंदाज करने कि मुझसे गुस्ताखी जरुर हुई है.
रही सही कसर हमारे कई छुटभैये 'माननीय' नेतागण पूरी कर देते हैं. चोरी की गाडी के साथ पकडे जाने पर भी गर्व से कहते हैं कि "ये विरोधियों की साजिश है." बताइए, है ना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता.
होने को तो अधिकार के साथ कर्तव्य नाम की 'बला' भी जुडी होती है और लोग जानते भी हैं पर प्रेम की मीठी कैंची से जेब कतरने में माहिर, जुगाड़ समपन्न हमारे लोग कैसे स्वीकार करें की वो गलत भी हो सकते हैं. हम बेशक पांचवी पास ना कर सकें पर इतने प्रतिभा समपन्न हैं कि अपने कलेक्टर तक को उसकी नानी याद दिला दें. हम ठहरे दूसरों की कमी निकालने के एक्सपर्ट. हमारे यहां (ये पता नहीं क्यों) इसे एक योग्यता के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता वर्ना एक ओलम्पिक शुरू किया जा सकता है जहाँ पहला स्थान तो हमारा पक्का है, हाँ पाकिस्तानी और बंगलादेशी भाई जरूर माफ़ करें क्योंकि उनके दावे को नजरंदाज करने कि मुझसे गुस्ताखी जरुर हुई है.
रही सही कसर हमारे कई छुटभैये 'माननीय' नेतागण पूरी कर देते हैं. चोरी की गाडी के साथ पकडे जाने पर भी गर्व से कहते हैं कि "ये विरोधियों की साजिश है." बताइए, है ना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता.
ट्रेन में किसी की रिजर्व सीट पर बैठेंगे और जिसकी सीट होगी बेचारा देखता रहेगा, वहीं कोई दूसरा उनकी सीट पर बैठे तो पचास उदाहरण देकर उसे उसकी गलती का एहसास दिलाएंगे, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. सीमेंट नहीं मिलता अब परेशानी तो है ना बिल्डर की बेचारा कम सीमेंट का पुल बना देता है तो दो-चार लोग क्या मर जाते हैं ये कम्बखत पत्रकारों को जुलाब हो जाता है. गलती तो सीमेंट कंपनी की है इसमें गरीब बिल्डर या हमारे मान्यवरों का क्या दोष, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक और रूप. दूधवाला टेकनोलोजी का सहारा लेकर अपनी गाय माता को प्रतिदिन एक इंजेक्शन लगाकर स्वतंत्रता पूर्वक कुछ अधिक दूध क्या हासिल कर लेता है कि कोहराम मच जाता है, अब इतनी बड़ी आबादी में दस-बीस लोगों को दस्त लग जाना कोई इतनी बड़ी बात तो नहीं कि उसे नज़रंदाज़ ना किया जा सके. वैसे भी ब्यूटी का जमाना है मालिक, अब माँ कब तक अपने सौंदर्य से समझौता करके नौनिहालों को दूध पिलाएगी. पर स्वतंत्रता के इस मौलिक अधिकार को सबसे अधिक किसी ने समझा है तो हमारे उस परम परिचित ने, स्वयं की शादी के दिन फेरों के समय भाई साहब का ' मूत्र विसर्जन ' अनायास ही हो गया, अब जितने लोग उतनी बातें. तुरंत निहायत बेशर्मी से खड़े होकर बोले,
हें हें हें.. ये है मेरा स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार.