Tuesday, 10 July 2018

बस इतनी सनद रहे


यदि हम अधिक पीछे ना भी जायें तो जून 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीमती गांधी को चुनाव में भ्रष्ट आचरण का दोषी पाकर छह सालों के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहरा दिया था. न्यायालय के इस निर्णय के खिलाफ प्रायोजित प्रदर्शन करवाये गये, जज का पुतला जलाया गया. श्रीमती इंदिरा  गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील की. उनके वकील ने कोर्ट से कहासारा देश उनके (श्रीमती गांधी के) साथ है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय पर स्टे नहीं दिया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने सशर्त स्टे  दियादेश में आपात स्थिति लागू कर दी गई, हजारों लोगों को जेलों में बंद कर दिया गया. चुनाव कानूनों में इस प्रकार परिवर्तन किया गया कि जिन मुद्दों पर श्रीमती गांधी को दोषी पाया गया था वे आपत्तिजनक नहीं माने गये, वह भी पूर्व-प्रभाव के साथ. कहा गया कि तकनीकी कारणों से जनादेश का उल्लंघन नहीं किया जा सकतातथाकथित प्रगतिशील लोगों ने तब इसकी जय-जयकार की. उस समय भी किसी को न्यायपालिका के सम्मान की याद नहीं आई थी.

कई वर्षों की मुकदमेबाजी तथा नीचे के न्यायालयों के कई आदेशों के बाद आखिरकार 1983 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि वाराणसी में शिया कब्रगाह में सुन्नियों की दो कब्रें हटा दी जायें उत्त प्रदेश के सुन्नियों ने इस निर्णय पर बवाल खड़ा कर दिया, हमेशा की तरहउत्तर प्रदेश की सरकार ने कहा कि न्यायालय का आदेश लागू करवाने पर राज्य की शांति, व्यवस्था को खतरा पैदा हो जायेगासर्वोच्च न्यायालय ने अपने ही आदेश के कार्यान्वयन पर दस साल की रोक लगा दी, लेकिन संविधान के किसी हिमायती ने तब जबान नहीं खोली.

1986 में सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया कि जिस मुस्लिम पति ने चालीस साल के बाद अपनी लाचार और बूढ़ी पत्नी को छोड़ दिया है, उसे पत्नी को गुजारा भत्ता देना चाहिये. इसके खिलाफ भावनाएँ भड़काई गईं, सरकार ने डर कर संविधान इस प्रकार बदल दिया कि न्यायालय का फैसला प्रभावहीन हो गया. राजीव भक्तों ने कहा कि यदि ऐसा नहीं करते तो मुसलमान हथियार उठा लेते. तो भाई सरकार का भी कोई काम है कि नहीं, उस समय सभी तथाकथित सेकुलरवादियों ने वाह-वाह की, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को जूते लगाने का यह सबसे प्रसिद्ध मामला है.

अक्तूबर 1990 में जब वी.पी.सिंह ने मण्डल को उछाला तो उनसे पूछा गया कि यदि न्यायालयों ने आरक्षण-वृद्धि पर रोक लगा दी तो क्या होगा?  उन्होंने घोषणा की, हम इस बाधा को हटा देंगे यानी संसद और विधानसभाओं में बहुमत के आधार पर न्यायालय के निर्णय को धक्का देकर गिरा देंगे. चाटुकारों ने उनकी पीठ ठोकी और  न्यायालय के सम्मान की कविताएं गाने वाले दुबककर बैठे रहे.

1991 में सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी जल विवाद पर अपना फैसला सुनाया न्यायाधिकरण के आदेश मानने जरूरी हैं”  परन्तु सरकार ने आदेश लागू नहीं करवायेकभी कहा गया कर्नाटक जल उठेगा तो कभी कहा गया तमिलनाडु में आग लग जायेगीजो उखाड़ना हो उखाड़ लो, न्यायपालिका के सम्मान की बात तो कभी किसी ने उस समय की ही नहीं.

राज्यसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में  कि रेल विभाग की कितनी जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जा जमाया हुआ है, मंत्री ने लिखित उत्तर में स्वीकार किया कि रेलवे  की 17 हजार एकड़ भूमि पर अवैध कब्जा है तथा न्यायालयों के विभिन्न आदेशों के बावजूद यह जमीन छुड़ाई नहीं जा सकी है क्योंकि गैरकानूनी ढंग से हड़पी गई जमीन को खाली कराने से  शांति भंग होने का खतरा  उत्पन्न हो जायेगा. किसी मान्यवर महोदय ने कभी नहीं पूछा कि न्यायालय का सम्मान किस चिड़िया का नाम है और जो मान्यवर सरकारी ज़मीन दबाये बैठे हैं उन्हें कब हटाया जायेगा

आज बेशक मोदी भक्तों के बारे में कहा जाता हो पर सत्ता और उसके चाटुकारों का स्वभाव यही है, बस येन-केन प्रकारेण हमारा अस्तित्व बना रहे. भावार्थ ये कि कल कोई और था, आज कोई और हो सकता है पर सम्मान करना सीख ही लीजिये जनता का, न्यायपालिका और अपने संस्थानों का वरना, एक समय की बात है कि 'इंदिरा इज इंडिया' भी था. 

बस इतनी सनद रहे कि, भारत का जनमानस बरगद की पूजा करता है.