Wednesday, 10 January 2018

गाँधी होना और गाँधी दिखना


कुछ लोग गांधी के नाम पर सत्ता का सुख तो चाहते हैं पर गांधी की तरह न तो त्याग ही कर पाते हैं और ना ही स्वीकारना चाहते  हैं की वे राजनीति भी, या राजनीति ही करते हैं. अन्ना हजारे, अभी ज्यादा दिन नहीं हुए तो शायद आपको वो याद भी हों. अन्ना हजारे ने न जाने कब से शरद पवार  से राजनीतिक दुश्मनी गाँठ में बाँध राखी हैआलम यह था कि जब अन्ना हजारे दिल्ली के जंतर मंतर पर अनशन पर बैठे तो उन्होंने उस कमेटी में भी शरद पवार का रहना मंजूर नहीं किया जिसे संयुक्त रूप से जनलोकपाल विधेयक पर चर्चा करने के लिए बनाया  जा रहा था. शायद इसी  कारण  जैसे ही अन्ना हजारे को पता चला कि शरद पवार को किसी ने चांटा मारा है तो वे अपनी खुशी छिपा नहीं सके और तुरंत पूछ बैठे, क्या बस एक ही चांटा मारा है?

उनकी इस चुटकी का वहां मौजूद लोगों ने हंसकर और तालियां बजाकर समर्थन भी कर दिया. अन्ना वहां से तो चले गये लेकिन थोड़ी ही देर में उन्हें अहसास हो गया कि यह तो उनके गांधीवादी चरित्र पर धब्बा बन जाएगा,  इसलिए लीपापोती शुरू कर दी. गांधी के फोटोकापी होने का दावा करनेवाले अन्ना पर सबसे तीखा प्रहार गांधी खानदान के तुषार गांधी ने यह कहते हुए किया है कि हो सके तो अब अन्ना हजारे राजघाट जाएं.

अन्ना हजारे ने पहले तो बहुत लापरवाही भरे अंदाज में कह दिया फिर जब उन्हें अहसास हुआ कि गलती कर दी तो पहले सफाई दी फिर झूठ बोलने पर उतर आये. लेकिन हम जैसे लोग कहां माननेवाले थे, कल तक अन्ना के कहे को आखिरी वाक्य समझनेवाले मीडिया तक ने अन्ना को घेरना शुरू कर दिया. एक निजी टीवी चैनल ने जब उनसे बात करते हुए पूछा कि आपने ऐसा क्यों कहा तो अन्ना ने सफेद झूठ बोल दिया कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा है. जाहिर है अन्ना के इस झूठ से उनकी छवि को गहरा धक्का लगा.  हरविन्दर  ने हालांकि चांटा शरद पवार को मारा था और उसका गुस्सा नेताओं के प्रति था लेकिन अन्ना हजारे के एक नासमझी भरे वाक्य ने माहौल को ऐसा पलट दिया है कि चांटा भले ही शरद पवार को मारा गया हो लेकिन चोट अन्ना हजारे को लग गई है. वैसे थप्पड़ चलाना लोकतांत्रिक मर्यादाओं के खिलाफ है पर ये नया गांधीवाद है, खम्बे के साथ बाँध कर पिटाई.

सच तो ये है कि चांटा उस समय भले ही शरद पवार को लगा हो लेकिन चोट अन्ना हजारे को लग गई. चोट तो भारत को प्यार करने वालो को भी लगी पर लगे हाथ आम  जनता को ये भी समझ आ ही गया कि  गाँधी होना और गाँधी दिखना दोनों अलग-अलग बातें हैं. 
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