Saturday, 10 February 2018

रेप की सजा महज दो थप्पड़


एक दिन अमरोहा,  उत्तर प्रदेश से  मुझसे  मिलने  आनंद  प्रकाश आये  और  एक  प्रकरण  में मदद  मांगीजो  उन्होंने  कहा  वो  आपसे साझा कर  रहा  हूँश्यामपुर  गाँव  के  मजबूर शरफू और उसकी नन्ही बेटी  की दास्तान है ये,  जिनकी  कोई  नहीं  सुन रहा था क्योंकि  वो  साधनहीन थे,  शरफू की  नन्ही  सी  बेटी  के  साथ  रिजवान  नाम  के  लड़के  ने  गाँव  में  ही  रेप  किया और  उसके  बाद  किसी  को    बताने  की  धमकी  देकर  भगा  दिया.  तब तक किसी तरह का कोई केस भी शायद ही कहीं दर्ज हुआ होगा.

बेचारी  डरी-सहमी  बच्ची  ने  तब  तक  किसी  को  कुछ  भी  नहीं  बताया  जब  तक  की  उसकी  तबियत  खराब  नहीं  हो   गयी.  हद  तो  तब  हो  गयी  जब  उसे  इलाज   या  सहायता   के  लिए  गाँव  से  बाहर  जाने  से  भी  रोका  गया  और  सारी  बात  पंचायत  में  ही  निपटाने  के  लिए  ( वस्तुत: जबरदस्तीमनाया  गया.  सवाल  हुक्का-पानी  बंद  होने  का  आया  तो  बाकि  परिवार  की  सोच  कर  बेचारा  शरफू चुप  रह  गया. मायावती  का  राज  कितना  दबंग था  या मजबूर  इसका  इल्म  हमें तब   हुआ  जब  पंचों का फैसला सुना हमने.  रिजवान  को  आरोपी  भी  माना  गया  और उसके लिए एक सजा  भी  तजवीज़  की  गयी,  और  कोई   छोटी-मोटी सजा  नहीं पूरे दो थप्पड़.
  
उस समय  मुज्जफरनगर  कमिश्नरी  में  रहे  अपने  एक  परिचित  आई..एसमित्र  को  फ़ोन  लगाया  तो  सुनते ही उन्होंने मुझे  तुरंत  आनंद  जी  को उनके पास  भेजने  के  लिए  कहा  ताकि  शरफू  की   बिटिया  को हर संभव प्रशासनिक चिकित्सीय  मदद  मुहैया  करायी  जा  सके पर साथ ही ये भी कहा कि कानून का मामला आप ही संभालो तो अच्छा रहेगा.

उस बच्ची की व्यथा  सुनकर  जो  दर्द  हमें  हुआ उम्मीद  है  कि आपको  भी  उस  दर्द  का  एहसास हुआ होगा, आखिर बेटियाँ तो सबकी  सांझी  होती  हैं.  सोचिये  यदिहम   लोग  सिर्फ  कागजों  पर  अपनी   भड़ास  निकाल  कर  अपना  कर्तव्य  पूरा  मान  लेंगे  तो  रिजवान  जैसे  लोग  अपनी  बेहूदा  अनाप-शनाप  परम्पराओं  का  फायदा  उठा  कर  ना जाने   कितनी  बच्चियों  का  बेडा  गर्क  करेंगे.

उस दिन एक  थप्पड़ आनंद प्रकाश जी की बातें सुनते - सुनते ही पड़ा मेरी आत्मा पर और दूसरा, शायद हमारे समाज पर, प्रशासन पर, नेताओं पर. बात पुरानी है, मायावती जी के समय की पर दो थप्पड़ की उस सजा से लेकर आज तक क्या कुछ बदला है और यदि बदला है तो कितना बदला है, इसका निर्णय मैं पूर्णतया आप पर छोड़ता हूँएक रिज़वान को तो उसके किये गुनाह की पूरी कानूनी सजा मिली पर न जाने कितने ही छूट जाते होंगे ये सोच कर आज भी तकलीफ होती है.

एक बार आप भी सोचिये, कि आखिर एक  नन्ही बच्ची  के  दर्द  को  ये  समाज  कब  समझेगा !
क्या  ऐसी तथाकथित  पंचायतें  कभी  औरत  को  एक  इंसान  समझेंगी ?